जनजातिय मामलों के मंत्रालय ने सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण पर गठित स्थायी समिति की जनजातियों के लिए चलाई जा रही शैक्षिणिक उत्थान योजनाओं से संबंधित रिपोर्ट में राज्य सरकारों की दायित्वहीनता एवं केन्द्र सरकार निष्क्रियता साफ झलक रही है। समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि जनजातियों के शैक्षणिक उत्थान के लिए चलाई जा रही एकलव्य मॉडर्न रिहायशी स्कूलों की स्थापना की परियोजना के अंतर्गत मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों के लिए 100 स्कूल मंजूर किये थे, उनमे से केवल 79 स्कूल ही कार्यरत है । शेष 21 स्कूल शुरु ही नही हुए यहां तक कि उनमें से चार स्कूल जनजाति बहुल आसाम एवं मेद्यालय से दूसरे राज्यों मे स्थान्तरित कर दिये गये। कमेटी ने पाया की राज्य सरकारों की गैर जिम्मेदारी एवं उदासीनता के कारण यह स्कूल स्थापना का कार्य समय से नही हो सका और अब कहा है कि मंत्रालय अनिर्मित सभी स्कूलो को 2 वर्ष के भीतर शुरु करने के लिए राज्य सरकारों को आवश्यक निर्देश जारी करें। समिति ने कहा है कि 2004.05 से 2007.08 में मंत्रालय द्वारा उत्तर -मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए अरुणाचल प्रदेश, बिहार, दमन दीव के लिए जो वित्तीय मदद नही दी गई उसे तुरंत जारी किया जाये। कमिटी मंत्रालय के इस जवाब से असंतुष्ट थी कि संबंधित राज्य द्वारा वित्तीय मांगो के प्रस्ताव नही भेजे थे। कमेटी के सामने सरकार ने अपने जवाब में कहा था, मंत्रालय ने 2007-08 के दोहराने संबंधित राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को कई बार लिखित स्मृति पत्र भी भेज चुकि है लेकिन राज्य सरकारों ने आवश्यक कार्यवाही नही कि, इसे कमेटी ने खारिज कर दिया तथा कहा कि मंत्रालय को आदिवासी छात्रों के लिए राज्य सरकारों पर आवश्यक दवाब बनाये ताकि उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। एवं इन कारणों का भी पता लगाये जिनके कारण राज्य सरकारे समय-समय पर प्रतिवेदन क्यों नही दे पाती है। शत प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा संचालित उत्तर मैट्रिक छात्रवृति योजना के ठीक क्रियान्वयन नही होने के पीछे सरकार का तर्क है की वित्तीय रुप से पिछड़े अनुश्चिित जनजाति के छात्र छात्रवृति के लिए आवेदन नही करते है इसे कमेटी ने सिरे से खारिज कर दिया तथ टालने के रवैये की कड़ी आलोचना की है। स्थयी समिति ने अपनी अगली सिफारिश के संदर्भ में मंत्रालय से आये जवाब मे कि असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड़ से इस छात्रवृति पर खर्च एवं उपयोग प्रमाण पत्र नही मिलने के कारण इनकी वित्त पूर्ति पर रोक लगा दी गई थी लेकिन कमेटी ने इससे नाराजगी जताते हुए कहा कि इसके खच्र का सुनिश्चित करते हुए यह ध्यान दिया जाये कि निर्धारित योजना का पैसा उसी योजना पर खर्च किया जाये किसी अन्य योजना मे यह डाइवर्ट नही किया जाएं। 2004-05, 2005-06 और 2006-07 में अप ग्रेजुएशन आफ मेरिट आफ एसटी स्टूडेंट स्कीम के अंतर्गत लाभार्थियों की संख्या कई राज्यों में नही के बराबर है एवं 2007-08 में उत्तर प्रदेश में तो इस योजना के अंतर्गत किसी को भी लाभ नही दिया गया यह दशा मंत्रालय की अनदेखी एवं राज्य सरकारों की जनजातियों के शैक्षणिक विकास के प्रति उदासीनता को उजागर करती है।
Wednesday, March 18, 2009
सरकारी बहानो में उलझी आदिवासी शिक्षा विकास योजनाये
जनजातिय मामलों के मंत्रालय ने सामाजिक न्याय एवं सशक्तिकरण पर गठित स्थायी समिति की जनजातियों के लिए चलाई जा रही शैक्षिणिक उत्थान योजनाओं से संबंधित रिपोर्ट में राज्य सरकारों की दायित्वहीनता एवं केन्द्र सरकार निष्क्रियता साफ झलक रही है। समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा है कि जनजातियों के शैक्षणिक उत्थान के लिए चलाई जा रही एकलव्य मॉडर्न रिहायशी स्कूलों की स्थापना की परियोजना के अंतर्गत मंत्रालय ने विभिन्न राज्यों के लिए 100 स्कूल मंजूर किये थे, उनमे से केवल 79 स्कूल ही कार्यरत है । शेष 21 स्कूल शुरु ही नही हुए यहां तक कि उनमें से चार स्कूल जनजाति बहुल आसाम एवं मेद्यालय से दूसरे राज्यों मे स्थान्तरित कर दिये गये। कमेटी ने पाया की राज्य सरकारों की गैर जिम्मेदारी एवं उदासीनता के कारण यह स्कूल स्थापना का कार्य समय से नही हो सका और अब कहा है कि मंत्रालय अनिर्मित सभी स्कूलो को 2 वर्ष के भीतर शुरु करने के लिए राज्य सरकारों को आवश्यक निर्देश जारी करें। समिति ने कहा है कि 2004.05 से 2007.08 में मंत्रालय द्वारा उत्तर -मैट्रिक छात्रवृत्ति के लिए अरुणाचल प्रदेश, बिहार, दमन दीव के लिए जो वित्तीय मदद नही दी गई उसे तुरंत जारी किया जाये। कमिटी मंत्रालय के इस जवाब से असंतुष्ट थी कि संबंधित राज्य द्वारा वित्तीय मांगो के प्रस्ताव नही भेजे थे। कमेटी के सामने सरकार ने अपने जवाब में कहा था, मंत्रालय ने 2007-08 के दोहराने संबंधित राज्यों एवं केन्द्र शासित प्रदेशों को कई बार लिखित स्मृति पत्र भी भेज चुकि है लेकिन राज्य सरकारों ने आवश्यक कार्यवाही नही कि, इसे कमेटी ने खारिज कर दिया तथा कहा कि मंत्रालय को आदिवासी छात्रों के लिए राज्य सरकारों पर आवश्यक दवाब बनाये ताकि उच्च शिक्षा में उनकी भागीदारी सुनिश्चित हो सके। एवं इन कारणों का भी पता लगाये जिनके कारण राज्य सरकारे समय-समय पर प्रतिवेदन क्यों नही दे पाती है। शत प्रतिशत केन्द्र सरकार द्वारा संचालित उत्तर मैट्रिक छात्रवृति योजना के ठीक क्रियान्वयन नही होने के पीछे सरकार का तर्क है की वित्तीय रुप से पिछड़े अनुश्चिित जनजाति के छात्र छात्रवृति के लिए आवेदन नही करते है इसे कमेटी ने सिरे से खारिज कर दिया तथ टालने के रवैये की कड़ी आलोचना की है। स्थयी समिति ने अपनी अगली सिफारिश के संदर्भ में मंत्रालय से आये जवाब मे कि असम, झारखंड, छत्तीसगढ़, जम्मू-कश्मीर, मध्यप्रदेश, तमिलनाडु, त्रिपुरा, उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड़ से इस छात्रवृति पर खर्च एवं उपयोग प्रमाण पत्र नही मिलने के कारण इनकी वित्त पूर्ति पर रोक लगा दी गई थी लेकिन कमेटी ने इससे नाराजगी जताते हुए कहा कि इसके खच्र का सुनिश्चित करते हुए यह ध्यान दिया जाये कि निर्धारित योजना का पैसा उसी योजना पर खर्च किया जाये किसी अन्य योजना मे यह डाइवर्ट नही किया जाएं। 2004-05, 2005-06 और 2006-07 में अप ग्रेजुएशन आफ मेरिट आफ एसटी स्टूडेंट स्कीम के अंतर्गत लाभार्थियों की संख्या कई राज्यों में नही के बराबर है एवं 2007-08 में उत्तर प्रदेश में तो इस योजना के अंतर्गत किसी को भी लाभ नही दिया गया यह दशा मंत्रालय की अनदेखी एवं राज्य सरकारों की जनजातियों के शैक्षणिक विकास के प्रति उदासीनता को उजागर करती है।
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